लोक संवाद में हुई लोक गायिका अनीता पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी सम्मान से सम्मानित

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लोक संवाद में हुई लोक गायिका अनीता लोकगीत की अमर सुरसाधिका , पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी सम्मान से सम्मानित

सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान द्वारा “पुरखा पुरनिया ” संवाद कार्यक्रम में लोकगीत की अमर सुरसाधिका , पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी पर लोक संवाद 3 अप्रैल, शनिवार को मालीघाट
हुई। कार्यक्रम संयोजक लोक कलाकार सुनील कुमार ने बताया कि मुज़फ़्फ़रपुर की
विंध्यवासिनी देवी कला जगत में रोशनी बनकर राह दिखाने का कार्य की।सुरसाधिका , पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी सम्मान से सम्मानित लोक गायिका अनीता ने बताया कि लोकगीत को अमर व लोकसुरों की महान साधिका घर-घर अलख जगाने का कार्य कर भारत देश की अंगुठी का नगीना बन गई।

अध्यक्षता कर रहे बज्जिका परिवार के सशांक शेखर ने बताया कि जिस समय महिलाओं का संसार मात्र घर-परिवार ही होता था, पर्दे में रहकर जीवन यापन करना पड़ता था, उस समय महिला का नौकरी करना, संगीत सीखना और गाना संभव नहीं था। घर के भीतर भी नारियों को सिर पर आंचल लेकर काम करना पड़ता था उस समयआर्य कन्या विद्यालय की सीधी-सादी शिक्षिका, आकाशवाणी केंद्र, पटना के स्थापना समारोह में स्वरचित गीत भइले पटना में रेडियो के शोर, बटन खोल तनि सुन सखिया गायन प्रस्तुत कर वहां की कलाकार, प्रोड्यूसर भी बन गईं। संगीतकार रंधीर मिश्रा ने बताया कि वे अपने तरह की अकेली महिला लोकगायिका हैं जो घर-घर गाए जानेवाले गीतों को गाकर श्रोताओं को दीवाना बना दिया ।बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी समय पर प्रतीक्षा करते कि विंध्यवासिनी देवी जी के गीत सुनने को मिलेंगे। घुरा के पास चारों ओर बैठे पुरुष और रसोई बनाती महिलाएं घर में बैठकर गीत का भरपूर आनंद उठाते। महिलाएं सुर में सुर मिलाकर गीतों को गातीं और आपस में बातें करतीं थी। स्त्री रत्न सरला श्रीवास सम्मान से सम्मानित माधुरी कुमारी ने बताया कि बिहार से शुरू कर सात समुंदर पार तक लोकसंगीत को प्रतिष्ठा दिलाई विंध्यवासिनी देवी जी के गीतों में मिट्टी की गंध आती है।
घर-आंगन गीतों को ऊंचाई तक पहुंचाने का श्रेय विंध्यवासिनी जी को है। तब लोग नहीं जानत थे कि वे अपनी संस्कृति एवं संस्कार को साथ लेकर लोक संगीत जगत की प्रेरणा बनेंगी। उन्होंने लोक संगीत रूपक और लोक नाट्य की रचना ही नहीं की, उनका निर्देशन भी किया। 1962-63 में पहली मगही फिल्म भइया में संगीत निर्देशक चित्रगुप्त के निर्देशन में उन्होंने स्वर दिया। मैथिली फिल्म कन्यादान, छठ मइया, विमाता में डोमकच झिंझिया की लोक प्रस्तुति से काफी ख्याति पाई।

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इस अवसर पर सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान के संरक्षक युवा उधोगपति प्रभात कुमार ठाकुर, अजय ठाकुर, कवि कलाकार दिनेश प्रसाद, चरंजिवी शाह, मोहम्मद अली जौहर सिद्दीक़ी, मोहम्मद अब्दुल्लाह, युवा समाजसेवी मोहम्मद जमाल अकबर ने “पुरखा पुरनिया” के द्वारा बनाए हुए नियम पर चलकर लोक संस्कृति को सहेजने पर विचार रखें।

धन्यवाद ज्ञापन अर्पणा ने किया और बताई कि बज्जिका भाषा को प्रतिष्ठा दिलाने में युवा हमेशा बढ़ चढ़कर योगदान देगी।

 

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